Monday, 3 June 2019

*** - चाहत का इज़हार

पहली ही नज़र में पढ़ लिया था मैंने तुम्हें
बस कुछ वक्त दिया था संभलने के लिए
कब तक छिपा पाओगी तुम
और छिपा कर कहाँ जाओगी तुम

मेरे पास आने से डरती हो
पर दूर रहकर भी तो तड़पती हो
कब तक खुद से खुद को दूर रख पाओगी तुम
सच कहो क्या मेरे बगैर कुछ पल भी रह पाओगी तुम

अब बात आदत से बढ़कर ज़रूरत की हो गई है
अब बात मोहब्बत से बढ़कर इबादत की हो गई है
क्या मन मे रखकर चैन से सो पाओगी तुम
क्या इतना पाकर भी मुझे खो पाओगी तुम

इतने दिनों में मैंने जितना जाना है तुम्हें
सब भूलकर प्यार से गले लगाना है तुम्हें
समय कम है तो क्या हुआ
खुद को भूलकर बस अपनाना है तुम्हें

खुद को भूलकर बस अपनाना है तुम्हें

~ राहुल मिश्रा ~

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