Tuesday 13 August 2019

*** चंद लम्हों की सदियाँ

चंद लम्हों में ही सारी सदियाँ समेट लेती है
बिना कीमत मेरा प्यार खरीद लेती है

सो जाती है मेरी नींदे अपने सिरहाने रखकर
मेरे सपनों का सारा संसार खरीद लेती है

वक़्त के साथ बड़ी कशमकश सी है
तू उससे से भी मेरे हालात खरीद लेती है

दिल तो था ही तेरा फिर रूह पर क्यों
मेरे जीने का अधिकार ही खरीद लेती है

सारा जहां रोशन था जिसके ओज से
उस सूरज का सारा ताप खरीद लेती है

मोलभाव का हुनर तो नहीं है तेरी वफ़ा में
फिर कैसे नफ़े का पूरा व्यापार खरीद लेती है

बातें ना सही अपनी खामोशी ही सुना
तू तो बेजान से भी जान खरीद लेती है

जिस दौर में आई थी वो फिर देकर जा
तू तो मोहताज से भी ताज खरीद लेती है

चंद लम्हों में ही सारी सदियाँ समेट लेती है.....

~ राहुल मिश्रा ~

Saturday 3 August 2019

फिर कश्मीर हमारा है

उन्होंने धर्म के नाम पर पाकिस्तान बना लिया
हमे सेकुलरिज्म थोपकर हिंदुस्तान बना दिया

वहाँ ज़िहाद के नाम पर हमें काटते रहे
यहाँ जातियों के नाम पर हमें बांटते रहे

नेहरू की कमज़ोरी ने कश्मीर हरा दिया
मोदी ने लालचौक पर तिरंगा फहरा दिया

कश्मीर की कश्मीरियत तब कहाँ गई थी
जब पंडितों को मारकर खानाबदोश बना दिया

कश्मीर से जब पंडितों का निर्वासन हुआ था
उसी श्राप से आतंकियों का निर्वाचन हुआ था

कहते हैं 370 हटने से मुसलमान कहाँ जाएगा
पत्थरबाज तब समझेगा जब खुद चोट खायेगा

कई सालों की ग़ुलामी की हरारत अब जा चुकी है
सदियों से गुम गुमान की आदत अब आ चुकी है

भगवा के सामने हर धर्म का रंग फीका है
मोदी आने के बाद पुनः हमने ये सीखा है

अमित शाह के साहस से गुंजा बस एक नारा है
कई दशकों के बाद अब फिर कश्मीर हमारा है

कई दशकों के बाद अब फिर कश्मीर हमारा है

~ राहुल मिश्रा ~