Friday 10 April 2015

बेटियां - एक समर्पण

"बेटियां - एक समर्पण"

बेटियां जब तक बच्ची होती हैं
बहुत अच्छी होती है
पर बाद में भी बड़ी सच्ची होती हैं
ठोकरें उन्हें गिराती हैं
कई अनुभव कराती हैं
अच्छे बुरे में फर्क भी सिखाती हैं
वे स्वयं मनोबल बढाती हैं
पुनः उठकर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ जाती हैं
अपनों के साथ संसार का भी बोझ उठाती हैं
मेरे दुःख में साथ निभाती हैं
पर अपने समय नज़रें चुराती हैं
बेटे तो केवल अपना वंश बढ़ाते हैं
पर बेटियां दो वंश मिलाती हैं
और दोनों को बढाती हैं
तभी तो बेटियां सच्ची होती हैं
सारे जहाँ से अच्छी होती हैं ll

~ राहुल मिश्रा ~

Sunday 5 April 2015

स्वादेंद्रिय प्रबलता पर नियंत्रण की दुविधा - अवसर हनुमान जयंती का

बड़ा अजीब दृश्य था
पंक्तिबद्ध मनुष्य था l
एक कतार दर्शनम्
दूजी सुस्वाद भोजनम् ll
प्रथम मार्ग त्वरित बढ़ें
द्वितीय चले शनैः शनैः l
चित्त भंवरजाल में
चाहे मीमांसा हर हाल में ll
हरिनाम शक्ति से अंततः
इन्द्रियों की तृष्णा पर
विजय हुयी धर्मनिष्ठता ll
दर्शन किये हनुमान के
संग जयकारे राम नाम के l
क्षुधा तो कुछ दुर्बल हुयी
और आत्मशक्ति प्रबल हुयी ll
मंजिलों पर बढ़ती राह में
सीखा एक और हुनर प्रवाह में ll

~ राहुल मिश्रा ~