Tuesday 19 January 2016

कृषि प्रधान देश के किसान का मर्म

मेरे उत्तिष्ठ देश की पवित्र आत्मा है किसान
पसीना बहाकर मुझे अन्न देने वाला परमात्मा है किसान
जिस मिट्टी का क़र्ज़ आज तक ना चुका पाया मैं
उस मिट्टी को उपजाऊ बनाता है किसान l
कैसे नाज़ करूँ अपनी कमाई पर मैं
मेरे तो परिवार की भूख मिटाता है किसान
तब दुःख नहीं शर्म महसूस होती है
जब एक लाख के क़र्ज़ से मर जाता है किसान ll

सुना है देश में डिजिटल क्रांति आयी है
फिर क्यों उस विधवा के घर शांति छाई है
दर्द उसका मेरे शब्दों से बयां नहीं होगा
एहसास करना है तो पढ़ उसके चेहरे पर जो उदासी छाई है

क्यों बेबस है तू इतना,
क्या तुझे याद नहीं
जब मुहीम तुझे अपना बनाने की थी
शर्त सिर्फ चुनाव में जीत दिलाने की थी ll
वो खादी पहन जो तेरे पास आये थे
जिन्हे वोट देकर तूने भी कुछ सपने सजाये थे l
आज सूट पहन कर विदेशी दौरों पर जाते हैं
तेरी जमीन पर फैक्ट्री लगाने का इन्वेस्टमेंट लाते है l
अब तुझे भी तेरे अमूल्य योगदान को जताना होगा
उन्हें, जो तेरा मोल अपने बजट में तय कर जाते हैं ll

मेरा उद्देश्य तेरे निरादर का नही
फ़रियाद है, बस मुझे भी साथ ले ले
विकास की इस दौड़ में केवल हम ही क्यों पीछे छूट जाते हैं ll

जब प्रकृति नहीं नीति की मार से आत्महत्या करता है किसान l
तब किस गर्व से कहूँ कि मेरा देश है कृषि प्रधान ll
मेरा देश है कृषि प्रधान !!!!!!