Thursday 21 August 2014

Ticket, Me & IRCTC - A rhyme of true incident

सत्य घटना पर आधारित एक और कविता 

आज सुबह की यह घटना है,
सिर्फ घटना नहीं दुर्घटना है l
७:४० का भरा अलार्म था,
नींद में भी याद यह काम था l
अलार्म से पहले ही हम तैयार थे,
और जंग लड़ने को बेकरार थे l
जैसे ही IRCTC की घड़ी ने आठ बजाया,
हमने अविलम्ब पुनः Submit दबाया,
अगले ही पल छिपा हुआ Book Now उभर आया l
उसके बाद जो जद्दोज़हद अगले ४५ सेकंड हुई,
४५ मिनट की गयी कसरत सा पसीना निकल आया l
अंत में जब confirm ticket की झलक पायी,
स्वतः ही ईश्वर के लिए आभार की ध्वनि निकल आयी l
पर यकीन न हमे खुद पर ना IRCTC पर हुआ,
फिर तसल्ली के लिए हमने Booked Ticket History को छुआ l
जी हाँ मौका दीवाली पर भोपाल जाने का था,
हाल ही में हुए कुछ बुरे अनुभवों को भुलाने का था l
खैर, अब त्यौहार, त्यौहार की तरह ही मनाया जायेगा,
स्टेशन और एजेंट का चक्कर नहीं लगाया जायेगा l
यह भी एक अलग किस्म की अनुभूति है,
जो टिकट से वंचित रहे उनसे सहानुभूति है ll

Friday 27 June 2014

अल-सुबह पत्नी उवाच - चाय

अल-सुबह पत्नी उवाच !

अल-सुबह पत्नी जी, बातों बातों में, दे बैठीं एक राय,
काश के आज मिल जाती, आपके हाथों की चाय l

हमने भी भावनाओं में बहकर, चढ़ा दिया हत्था चूल्हे पर,
गर्म दूध को कर दिया अर्पण, चायपत्ती संग शक्कर I

देखा पीछे जो पलटकर, प्रथम उबाल पश्चात,
पत्नी जी सीधे खड़ी थीं, बांधे अपने हाथ l

हमने भी ना छोड़ा मौका, मारना चाहा पहला चौका l

पीकर चाय हमारे हाथ की, अपने को तुम धन्य समझना,
इस अमृत को तुम अपने, सतकर्मो का पुण्य समझना l

पहली चुस्की के पश्चात, मुखड़ा दिया बताय,
जैसे सच में ग्रहण किया, अमृत रुपी चाय ll

धन्यवाद संग थोप दिया, प्रतिदिन का यह काम,
आज से आप ही छानिये, अमृत का यह जाम l

यह सुनकर अंदर ही अंदर, रोये हम अपनी किस्मत पर,
किस घड़ी में आँख खुली थी, किसका चेहरा देख कर ll

~ राहुल मिश्रा ~

Wednesday 25 June 2014

MBA - A Small Story

"पुराने भोपाल" के सबसे भीड़-भाड़ वाले इलाकों में से एक "पीरगेट" जिसके इर्द गिर्द मैंने अपने जीवन से वो सबसे सुनहरे दिन या यूँ कहें २५ साल गुज़ारे हैं l

बात करीब १५-१६ साल पुरानी है l उस शाम मै और मेरा भाई गोलू (मामा का लड़का) वहीँ आपस में कुछ बात कर रहे थे l तभी पास में पटिये पर बैठे एक चच्चा की ओर हमारी नज़र गयी उन्होंने भी मौका देख कर इशारे से हमे बुला ही लिया l हम गए तो उन्होंने बड़े ही अदब के सा हमसे पूछा बेटा क्या करते हैं आप l हम दोनों ने लगभग साथ में ही जवाब दिया 'पढाई करते हैं चच्चा' l बोले अच्छा तो स्कूल के बाद क्या करेंगे l गोलू ने एक शब्द में ही कहा एम.बी. l यह सुनकर चच्चा ने तपाक से पूछ लिया बेटा एम.बी. का मतलब जानते हैं आप ? तब हमने एक दूसरे की तरफ बड़ी ही उम्मीद से देखा की "तू बोल" l फिर कुछ सेकंड के बाद मैंने कहा हाँ "मास्टर ऑफ़ बिज़नस एडमिनिस्ट्रेशन" l
शायद चच्चा समझ गए थे फिर उन्होंने हमे बैठने के लिए कहा और बोले चलिए एक बात सुनिए l

मैंने २० रुपये में ३० नीबू खरीदे, याने रुपये के जिनमे कुछ बड़े और कुछ छोटे सभी तरह के थे और फिर उनमे से १५ बड़े नीबू एक तरफ और १५ छोटे नीबू दूसरी तरफ छांट लिए l फिर तुम्हे १५ बड़े नीबू दिए और कहा इन्हें रूपये का एक बेचना l गोलू को १५ छोटे नीबू दिए और कहा इन्हें रुपये के दो बेचो l याने कुल रुपये के बेचो l मतलब जितने के खरीदे थे उतने के ही बेच दिए l अब आप पूछेंगे इसमें मुनाफा क्या हुआ ? हमने सिर हिलाते हुए कहा हाँ l उन्होंने कहा आपने अपने नीबू से कितने कमाए, मैंने कहा १५ रुपये l फिर गोलू से पूछा आपने उसने कहा . रुपये l दोनों मिलाकर कितने हुए ? हमने साथ में कहा २२. रूपये l तो मुनाफा कितने का हुआ ? हमने कहा . रुपये का !!!!

उस वक़्त तो हमे शायद समझ में नहीं पाया था के मुनाफा हो कैसे गया जबकि रुपये के खरीदे और रुपये के ही बेचे l पर आज शायद समझ में गया है कि

“Management is just to manipulate the already available resources. You can even earn the profit with the same input and same output, you just need to develop the quality only.”