प्रेम में संवाद और संवाद में प्रेम
श्याम तुम्हारे कांधे पर
सिर रखकर मैं खो जाती क्यूँ
सुनकर संगीत बांसुरी का
मैं तुममे ही रम जाती क्यूँ
तुम्हारे अंदर का अर्ध नर मैं हूँ
मेरे अंदर की अर्ध नारी तुम हो
प्रेम रूपी जीवन की नैया मैं हूँ
मेरे हृदय में बसी सवारी तुम हो
प्रेम बसा हो जीवन मे
तो स्वर्ग यहीं स्वर्गलोक यहीं
सन्यासी का तप यही
ब्रह्मज्ञान का आलोक यहीं
जीवन संघर्ष है भोग है
कभी आनंद कभी रोग है
जिस मन समाया प्यार है
उसी ने जीता संसार है
तुम विचलित ना हो राधे
ये रिवाज सभी को निभाना होगा
कभी शीतल हवा तो कभी अंगारे होंगे
अग्नि परीक्षा से गुजर कर हमे जाना होगा।।
#राधे_कृष्ण
~ राहुल मिश्रा ~
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