संध्या काल के विचरण में
मुख देख यमुना के दर्पण में
राधा रानी दौड़ पड़ीं
अपने कान्हा की शरण में
राधिका बोलीं कान्हा से
क्यों ऐसा होता मेरे साथ
जब होते दूर नैनों से तुम
अच्छी ना लगती कायनात
क्या तुमने मेरी याद में
अश्रु संग प्रेम बहाया है
कन्हैया बोले प्रेम तुम्हारा
अपनी आंखों में बसाया है
फिर कैसे अमर प्रेम को
अश्रु संग बह जाने दूँ मैं
हर बूंद तुम्हारे प्रेम की
कैसे अभ्र जाने दूँ मैं
ना कामना ना वासना
ये प्रेम तप यही साधना
तुम बसीं हृदय में साक्षात
हर स्पंदन है आराधना
मिलन जीव का हो ना हो
हम आत्मा के मीत हैं
हर पीड़ाओं से परे हम तुम
एक दूजे के मनमीत हैं।।
#राधे_कृष्ण
~ राहुल मिश्रा ~
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