नजदीकियां अब इतनी हो गई हैं
कि ना आसमान दिखता है ना ज़मीं
खो गया हूँ तेरे आग़ोश में इस क़दर
कि ना बुराइयां दिखती हैं ना कमी
दूर तक साथ चलना है तो
हाथ थामे रखना होगा
फ़ासला दरम्यां कुछ इतना हो
कि ना हवा गुजर पाये ना नमी
करीब ना होकर भी तुझे अब
महसूस करने लगा हूँ मैं
नज़दीकियों का आलम ये है
कि ना शुबहा है ना फहमी
किस्से खुद के खुद से गढ़ता हूँ
हर हिस्से में तुझको रखता हूँ
हर हिस्सा मुझसे कहता है
कि ना सुकून मिलता है ना कमी
~ राहुल मिश्रा ~
कि ना आसमान दिखता है ना ज़मीं
खो गया हूँ तेरे आग़ोश में इस क़दर
कि ना बुराइयां दिखती हैं ना कमी
दूर तक साथ चलना है तो
हाथ थामे रखना होगा
फ़ासला दरम्यां कुछ इतना हो
कि ना हवा गुजर पाये ना नमी
करीब ना होकर भी तुझे अब
महसूस करने लगा हूँ मैं
नज़दीकियों का आलम ये है
कि ना शुबहा है ना फहमी
किस्से खुद के खुद से गढ़ता हूँ
हर हिस्से में तुझको रखता हूँ
हर हिस्सा मुझसे कहता है
कि ना सुकून मिलता है ना कमी
~ राहुल मिश्रा ~