Friday, 10 April 2015

बेटियां - एक समर्पण

"बेटियां - एक समर्पण"

बेटियां जब तक बच्ची होती हैं
बहुत अच्छी होती है
पर बाद में भी बड़ी सच्ची होती हैं
ठोकरें उन्हें गिराती हैं
कई अनुभव कराती हैं
अच्छे बुरे में फर्क भी सिखाती हैं
वे स्वयं मनोबल बढाती हैं
पुनः उठकर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ जाती हैं
अपनों के साथ संसार का भी बोझ उठाती हैं
मेरे दुःख में साथ निभाती हैं
पर अपने समय नज़रें चुराती हैं
बेटे तो केवल अपना वंश बढ़ाते हैं
पर बेटियां दो वंश मिलाती हैं
और दोनों को बढाती हैं
तभी तो बेटियां सच्ची होती हैं
सारे जहाँ से अच्छी होती हैं ll

~ राहुल मिश्रा ~

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