"पुराने भोपाल" के सबसे भीड़-भाड़ वाले इलाकों में से एक "पीरगेट" जिसके इर्द गिर्द मैंने अपने जीवन से वो सबसे सुनहरे दिन या यूँ कहें २५ साल गुज़ारे हैं l
बात करीब १५-१६ साल पुरानी है l उस शाम मै और मेरा भाई गोलू (मामा का लड़का) वहीँ आपस में कुछ बात कर रहे थे l तभी पास में पटिये पर बैठे एक चच्चा की ओर हमारी नज़र गयी उन्होंने भी मौका देख कर इशारे से हमे बुला ही लिया l हम गए तो उन्होंने बड़े ही अदब के साथ हमसे पूछा बेटा क्या करते हैं आप l हम दोनों ने लगभग साथ में ही जवाब दिया 'पढाई करते हैं चच्चा' l बोले अच्छा तो स्कूल के बाद क्या करेंगे l गोलू ने एक शब्द में ही कहा एम.बी.ए l यह सुनकर चच्चा ने तपाक से पूछ लिया बेटा एम.बी.ए का मतलब जानते हैं आप ? तब हमने एक दूसरे की तरफ बड़ी ही उम्मीद से देखा की "तू बोल" l फिर कुछ सेकंड के बाद मैंने कहा हाँ "मास्टर ऑफ़ बिज़नस एडमिनिस्ट्रेशन" l
शायद चच्चा समझ गए थे फिर उन्होंने हमे बैठने के लिए कहा और बोले चलिए एक बात सुनिए l
मैंने २० रुपये में ३० नीबू खरीदे, याने २ रुपये के ३ जिनमे कुछ बड़े और कुछ छोटे सभी तरह के थे और फिर उनमे से १५ बड़े नीबू एक तरफ और १५ छोटे नीबू दूसरी तरफ छांट लिए l फिर तुम्हे १५ बड़े नीबू दिए और कहा इन्हें १ रूपये का एक बेचना l गोलू को १५ छोटे नीबू दिए और कहा इन्हें १ रुपये के दो बेचो l याने कुल २ रुपये के ३ बेचो l मतलब जितने के खरीदे थे उतने के ही बेच दिए l अब आप पूछेंगे इसमें मुनाफा क्या हुआ ? हमने सिर हिलाते हुए कहा हाँ l उन्होंने कहा आपने अपने नीबू से कितने कमाए, मैंने कहा १५ रुपये l फिर गोलू से पूछा आपने उसने कहा ७.५ रुपये l दोनों मिलाकर कितने हुए ? हमने साथ में कहा २२.५ रूपये l तो मुनाफा कितने का हुआ ? हमने कहा २.५ रुपये का !!!!
उस वक़्त तो हमे शायद समझ में नहीं आ पाया था के मुनाफा हो कैसे गया जबकि २ रुपये के ३ खरीदे और २ रुपये के ३ ही बेचे l पर आज शायद समझ में आ गया है कि
“Management is just to manipulate the already available resources. You can even earn the profit with the same input and same output, you just need to develop the quality only.”
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