Tuesday 13 August 2019

*** चंद लम्हों की सदियाँ

चंद लम्हों में ही सारी सदियाँ समेट लेती है
बिना कीमत मेरा प्यार खरीद लेती है

सो जाती है मेरी नींदे अपने सिरहाने रखकर
मेरे सपनों का सारा संसार खरीद लेती है

वक़्त के साथ बड़ी कशमकश सी है
तू उससे से भी मेरे हालात खरीद लेती है

दिल तो था ही तेरा फिर रूह पर क्यों
मेरे जीने का अधिकार ही खरीद लेती है

सारा जहां रोशन था जिसके ओज से
उस सूरज का सारा ताप खरीद लेती है

मोलभाव का हुनर तो नहीं है तेरी वफ़ा में
फिर कैसे नफ़े का पूरा व्यापार खरीद लेती है

बातें ना सही अपनी खामोशी ही सुना
तू तो बेजान से भी जान खरीद लेती है

जिस दौर में आई थी वो फिर देकर जा
तू तो मोहताज से भी ताज खरीद लेती है

चंद लम्हों में ही सारी सदियाँ समेट लेती है.....

~ राहुल मिश्रा ~

No comments:

Post a Comment