Thursday, 29 December 2016

हौसला

हौसला

अक्सर एक धुंधली सी परछाई दिखाई देती है
जो मुझसे कहती है
तू क्या था और क्या हो गया है
जीवन की धुंध में तेरा मासूम चेहरा कहाँ खो गया
तुझे नींद से जागना है
ठोकर से उठकर फिर भागना है
तुझे थमना नहीं है लड़ना है
अकेले नहीं सब को साथ लेकर आगे बढ़ना है
तुझे तेरी राह जीवन में खुद बनानी है
मेरी सौंपी हुयी जिम्मेदारी निभानी है
परेशानियों से लड़ने का हौसला मैं तुझे दूंगा
तुझमे क्षमता है
पृथ्वी की तरह सभी को स्वयं में समाने की
हवा की तरह चहुंओर सुगंध फैलाने की
आकाश के सामान बेरंग बने रहने की
अग्नि की तरह बुराइयों को भस्म कर देने की
जल की तरह निस्वार्थ बहने की
और सूर्य के सामान प्रकाशवान करने की

पंचतत्वों के सर्व गुणों को व्याप्त कर
तू आगे बढ़ बस आगे बढ़

~ राहुल मिश्रा ~

Friday, 23 December 2016

ग़लतफ़हमियां

ग़लतफ़हमियां

पहली मुलाकात से दोस्ती और दोस्ती से प्यार तक
कई बार हुई थीं ग़लतफ़हमियां
प्यार के लम्हों से तकरार तक, उन तकरीरों से फिर प्यार तक
कई बार हुई थीं ग़लतफ़हमियां
ऐसा नहीं है कि सिर्फ तकलीफ़ ही देती हों,
कुछ समय के लिए ही सही पर
कई बार  सुकून के मीठे पल भी दे जाती हैं ग़लतफ़हमियां
तुझे देखकर तुझे चाहकर तुझे पाने की आस पर
मेरे मन में कुछ अहसास भर जाती हैं ग़लतफ़हमियां
इज़हार के इंतज़ार में फिर इंतज़ार से इनकार तक
कई बार सही हैं ग़लतफ़हमियां
कभी हँसते तो कभी रोते आंसुओं में बही हैं ग़लतफ़हमियां
तेरे साथ चलते चलते स्वयं को उत्कृष्ट समझ बैठा था
क़दमों की हर आहट पर पाल बैठा था ग़लतफ़हमियां
जो होश आया तो सब कुछ जा चुका था
कुछ बचा था तो वो थीं ग़लतफ़हमियां

~ राहुल मिश्रा ~

Wednesday, 6 April 2016

तंजील अहमद - A Real Hero

कितने तंजील मारोगे हर घर से तंजील निकलेगा
मातृभूमि के सीने पर जब जब खंजर लहराएगा
अफ़ज़ल जैसे गद्दारों का जब नाम जुबां पर आएगा
बेटा भारत माता का फिर गोली सीने पे खाएगा
और देश की मिट्टी में जन्मा फिर मिट्टी में मिल जायेगा
उस माटी से जन्मे तंजील चुन चुन दुश्मन को मारेंगे
फिर देशभक्ति का लावा तब फूट ज्वालामुखी निकलेगा
तुम कितने तंजील मारोगे हर घर से तंजील निकलेगा
अब सुन ले तू हुंकार मेरी
मैँ आज प्रतिज्ञा लेता हूँ
देशद्रोह के अंगारे जो भी ज़ुबान से उगलेगा
हर घर में घुस के मारेंगे जिस घर से अफ़ज़ल निकलेगा

~ राहुल मिश्रा ~

Tuesday, 19 January 2016

कृषि प्रधान देश के किसान का मर्म

मेरे उत्तिष्ठ देश की पवित्र आत्मा है किसान
पसीना बहाकर मुझे अन्न देने वाला परमात्मा है किसान
जिस मिट्टी का क़र्ज़ आज तक ना चुका पाया मैं
उस मिट्टी को उपजाऊ बनाता है किसान l
कैसे नाज़ करूँ अपनी कमाई पर मैं
मेरे तो परिवार की भूख मिटाता है किसान
तब दुःख नहीं शर्म महसूस होती है
जब एक लाख के क़र्ज़ से मर जाता है किसान ll

सुना है देश में डिजिटल क्रांति आयी है
फिर क्यों उस विधवा के घर शांति छाई है
दर्द उसका मेरे शब्दों से बयां नहीं होगा
एहसास करना है तो पढ़ उसके चेहरे पर जो उदासी छाई है

क्यों बेबस है तू इतना,
क्या तुझे याद नहीं
जब मुहीम तुझे अपना बनाने की थी
शर्त सिर्फ चुनाव में जीत दिलाने की थी ll
वो खादी पहन जो तेरे पास आये थे
जिन्हे वोट देकर तूने भी कुछ सपने सजाये थे l
आज सूट पहन कर विदेशी दौरों पर जाते हैं
तेरी जमीन पर फैक्ट्री लगाने का इन्वेस्टमेंट लाते है l
अब तुझे भी तेरे अमूल्य योगदान को जताना होगा
उन्हें, जो तेरा मोल अपने बजट में तय कर जाते हैं ll

मेरा उद्देश्य तेरे निरादर का नही
फ़रियाद है, बस मुझे भी साथ ले ले
विकास की इस दौड़ में केवल हम ही क्यों पीछे छूट जाते हैं ll

जब प्रकृति नहीं नीति की मार से आत्महत्या करता है किसान l
तब किस गर्व से कहूँ कि मेरा देश है कृषि प्रधान ll
मेरा देश है कृषि प्रधान !!!!!!